Monday 27 April, 2009

3 comments:

  1. आदरणीय प्रकाश झा जी,
    चुनाव के इस मौके पर यह मामला सही बहस में नहीं आ सका।
    आपके कार्यालय में रुपये मिले। दस लाख। पुलिस ने इसे आपत्तिजनक बताकर केस कर दिया।
    आप भी लगे सफाई देने कि यह चीनी मिल से संबंधित धन है। यह सफाई क्यों? क्या इसके बदले कुछ सीधे सवाल पूछना उचित नहीं-
    1. चुनाव आचार संहिता के तहत एक सीमा से अधिक धन खर्च करने पर रोक है. नोट करें- खर्च करने पर। रखने पर नहीं। किस कानून के तहत रुपये रखने को आपत्तिजनक माना गया?
    2. मान लीजिये कि किसी राजनीतिक दल के कार्यालय या नेता के घर या कार्यालय में समर्थकों ने चंदा पहुंचाया। क्या इस पर किसी कानून में रोक है? कोई सीमा है इसकी?
    3. मान लीजिये कि ऐन चुनाव के एक दिन पहले कोई उम्मीदवार एक कार या एक फ्लैट या कोई अन्य कीमती वस्तु खरीदना चाहता हो और इसके लिए वह अपने पास राशि रखता हो। कोई कानून है जो इस पर ऐतराज करे?
    4. आपके कार्यालय से रुपयों का मिलना आपत्तिजनक लगा क्योंकि यह बड़ी राशि थी। कोई चुनाव कार्यालय ऐसा है जहां सौ दो सौ, पांच सौ या पांच हजार या पचास हजार रुपये नहीं मिलेंगे? क्या हर जगह ऐसा ही केस होगा? इस सवाल के जवाब में पुलिस प्रशासन के लोग कहेंगे कि कम राशि रहने पर जब्त नहीं होगी लेकिन ज्यादा रुपये होने पर मामला बनेगा। कोई बतायेगा कि कम राशि कितनी है और ज्यादा का मतलब क्या? वह कौन-सी लक्ष्मण रेखा है जिसे पार करते ही आप ज्यादा रुपये रखने के आरोपी हो जायेंगे?
    5. पिछले साल धनबाद रेलखंड में कुछ उत्साही पुलिसकर्मियों ने दो-तीन मामलों में व्यवसायियों को ज्यादा नगद राशि लेकर चलने के आरोप में पकड़ा, परेशान किया। उस वक्त प्रभात खबर, धनबाद में हमने इस पर लगातार अधिकारियों से जानना चाहा कि कितने रुपये नगद होने पर आप किसी नागरिक या व्यवसायी को धर दबोचेंगे, किस कानून के तहत? कोई जवाब नहीं मिला।
    आपके मामले में भी यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि किसी राजनेता या राजनीतिक कार्यालय को कितने रुपये तक रखने की अनुमति है और यह किस कानून के तहत आता है।
    इस सीधे सवाल के बदले आप जो सफाइयां दे रहे हैं, उससे कानूनी गंुडागर्दी को ही बढ़ावा मिल रहा है।
    विष्णु राजगढ़िया
    रांची

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  2. अरे सर, अभी तो ये अंगड़ाई है...कहने का मतलब साफ़ है। राजनीति में एफआईआर तो सफ़ल होने का सर्टीफिकेट है। अब क्या करें, सियासत की यही तो विडंबना है। चलिए 16 तारीख़ के लिए बेस्ट ऑफ लक...।

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  3. प्रकाश जी मैंने ये ब्लॉग अब पढ़ रहा हूँ जब आप भोपाल में हैं .... इस वक्त आरक्षण की शूटिंग के दौरान दैनिक भास्कर भोपाल के ऑफिस का मुआयना करते वक्त आपको देखा , फिर शूटिंग के दिन , एक जर्नलिस्टिक अप्रोच के साथ आपको इंटरनेट पर खंगालना शुरू किया और आपका ब्लॉग मिला ... ये पोस्ट पढने के बाद एसा लगा की अब तक अपनी फिल्मों में इस तरह की सरकारिया और सियासती खुराफात आप समाचारों और किसी के अनुभव को जानने के बाद रखतें होंगे लेकिन वास्तविक परदे परदे पर आपके साथ घटी इस घटना ने इस क्षेत्र में आपको और मजबूत बनाया होगा .....आपकी फिमों में मैंने गंगाजल, अपहरण , राजनीति देखी. सबसे अच्छी गंगाजल और अपहरण लगी ...आशा करता हूँ की आरक्षण में भी इस तरह की गहराई दिखेगी ....................

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